Thursday, February 12, 2009

इन्तेज़ार


किसीके इन्तेज़ार में
बय्ठे हैं हम राहों में
बरसो बीत गये
ना कोई आया
ना आँखों के समीप
नाही मेरे खयालों में ॥

प्यार तो नहीं था
पर प्यार के ही राहों में हम थे,
ना ज़मीन, ना आसमान था
हर जगह बस हम ही हम थे ।

साहिलों में बय्ठे हुए
उस पार सुरजको डूबते और निकलते हुए देखा
बंध मुट्ठी मे से जैसे रेत निकलती हो
कित्ने ही लम्हे हमने वैसे फिसलते हुए देखा ।

किसीके इन्तेज़ार में
बय्ठे हैं हम राहों में
खूब रोये पर
किसीने याद नहीं की
ना बयठाया पलकों पे किसीने
नाही अपने बाहो में ॥

6 comments:

  1. ......... this indeed spells the desire in ur eyes for someone who can love u and show u the real meaning of life....nicely mentioned in ur poem........... I think i should also start falling in love so that i can also become such an awsome poet........... :)

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  2. धन्यबाद दोस्तों... लेख तभी कामियाब है जब कोई पड़े... आप आयें और पड़े, इस लिए हम बहोत खुश है... Keep visiting and reading me ...

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  3. is kavita par apani rai de chuka hu fir bhi
    yahi kahunga ke thoda shabdo ko sahi chuno
    aur sabse khas ye ke kis shabd ko kaha use karna hai iska dhyan rakho

    kavita likhane k bad khud ko us kavita me dhal lo tumahe kavita me galtiya bhi pata padegi aur kuch naya sikhane ko bhi milega

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  4. बहुत सुन्दर लिख रहे हैं आप हिंदी में कोशिश करते रहे

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Warm Regards,
Tan :)

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