Thursday, January 29, 2009

मेरे गम





















तुम न हुए गम तो फीर
हम जीए साहारे किसके
मौतआए तो लौट जाना
घरी भर ठहरो तो सही -
साथ चले उम्रभर हमारे
तो थोड़ी देर और सही ।

भूल सकता नही उन्हें
हर बार जो दगा देते हैं
हैं अनजान वफ़ा से पर
इल्ज़ाम-ऐ-वफ़ा देते है
आकर् साथ मेरे उनसे तुम
मिलो तो सही -


हमे अनजाम-ऐ-मुहब्बत का इल्म
हो या न हो
दौलत-ऐ-इश्क का गुमां
हो या न हो
इल्तेजा इत्नी है, हकीक़त-ऐ-बयाँ
हो तो सही -



Jorhat, Assam
July 3, 2005

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