Friday, April 10, 2009

मलिका-ए-हुस्न


मलिका-ए-हुस्न
तेरा चर्चा आम है
तेरे दर पे भटकना ही तो
आशिकों का काम है...

खामोश तू रही
कभी कुछ भी कहा नहीं
चाहती तो तू, जिन्दगी दे देता, पर
जिन्दगी अपनी तो अब और रहा नहीं...

तुझे धुन्दने को अब जी करता है
तुझे देखने को अब जी करता है
जबसे तेरे होटों पे नाम आया है अपना
तेरे होटों को छूने को जी करता है...

ये मिलन की रात है आखरी
इसके बाद का कुछ पता नहीं
याद रखना या भूल जाना
इसमें होगी तेरी कुछ खता नहीं...

मलिका-ए-हुस्न
तेरा ख्याल दिल में ही होगा
जब भी चर्चा हुस्न की होगी
तो सिर्फ तेरा चर्चा ही होगा
तेरे जाने के बाद तेरा ही इंतज़ार होगा...



बहोत दर्द होता है जब कोई छुट जाता है दर्द और भी ज्यादा होता है जब कोई अंजना सा ये कहके बिछडे के आप उसके लिए बहोत मैंने रखते हैं कोई कहे और कहके चला जाये, और आपको तनहा, अकेला, बेकरार, बेचैन और परेशान छोड़ जाये, तो दर्द तो होना ही है... ये ऐसी ही एक दर्द भरी कविता है...

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