Wednesday, March 4, 2009

कहाँ हो तुम?


तेरी आँखों में मैं
खो गया हूँ
कुछ इस तरह से
जैसे बादल में खो जाता है चन्द्रमा ।

तेरी होंटों को
छूने की चाहत है
कुछ ऐसा
जैसे वोही मेरे दिलकी है रहनुमा ।

तेरी गेसुओं की तले
रात भर सोना चाहता हूँ
तेरी बाँहों में आके
आँख भर रोना चाहता हूँ,
तुझे ढूंढे मेरी हर साँस
तुझे पुकारे आता जाता हर लम्हा ॥

Sahityika suggested the second stanza to be like this (3/5/09):

तेरे होंटों को
छूने की चाहत है
कुछ ऐसी
जैसे तू ही मेरे दिल की है रहनुमा ।


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