Thursday, May 14, 2009

तेरे लिए...


अगर तू मुझको पढ़ रही है, तो मुझसे ज्यादा खुश और कोई नहीं... ये महफिल तेरी सजाई हुई है... ये रौशनी तेरी की हुई है, ये आलम तेरा किया हुआ है... तू कहती है मैं भूल जून - तू कहती है मैं पास न आयुं... लेकिन मैं जून भी तो कहाँ जाऊँ? हर गली तेरी घर से होके गुज़रती है... हर रास्ता तेरे रस्ते से जुर जाती है... दिल कहता है के मैं तुझे भरी महफिल में रुसवा कर जाऊँ, और तू कहती है के मैं चुप ही रहूँ... बेबसी, नाकामी और तेरी याद मुझे सोने नहीं देती... मैं भटकता रहता हूँ उन्ही गलियों में, जहाँ से कभी तू गुज़रा करती थी...


तेरे बिन ना जीना है ना मरना,
बिन तेरे ना है एक पग भी चलना

तेरे बिना सुना है आलम सारा,
बीते दिन ना आएंगे लौट के दोबारा

वो बीते दिन क्यों याद आये,
पल पल मुझको तेरी ही याद सताये

शयेद कभी तुझे भी हम याद आयें
तेरे बिन सुनी है मेरी दिलकी वो राहें


Cross posted at: The Writers Lounge on May 6, 2009

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