Thursday, May 14, 2009

तेरे लिए...


अगर तू मुझको पढ़ रही है, तो मुझसे ज्यादा खुश और कोई नहीं... ये महफिल तेरी सजाई हुई है... ये रौशनी तेरी की हुई है, ये आलम तेरा किया हुआ है... तू कहती है मैं भूल जून - तू कहती है मैं पास न आयुं... लेकिन मैं जून भी तो कहाँ जाऊँ? हर गली तेरी घर से होके गुज़रती है... हर रास्ता तेरे रस्ते से जुर जाती है... दिल कहता है के मैं तुझे भरी महफिल में रुसवा कर जाऊँ, और तू कहती है के मैं चुप ही रहूँ... बेबसी, नाकामी और तेरी याद मुझे सोने नहीं देती... मैं भटकता रहता हूँ उन्ही गलियों में, जहाँ से कभी तू गुज़रा करती थी...


तेरे बिन ना जीना है ना मरना,
बिन तेरे ना है एक पग भी चलना

तेरे बिना सुना है आलम सारा,
बीते दिन ना आएंगे लौट के दोबारा

वो बीते दिन क्यों याद आये,
पल पल मुझको तेरी ही याद सताये

शयेद कभी तुझे भी हम याद आयें
तेरे बिन सुनी है मेरी दिलकी वो राहें


Cross posted at: The Writers Lounge on May 6, 2009

10 comments:

  1. good poem Tan
    but why didn't you write more in this
    try to extend it little more
    after that jyada acchi lagegi

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  2. I love this poem. tere liye..reminds me of the song from Veer Zara.. a meeting of two hearts in years to come.. waiting..

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  3. Thanks Chirag... sometimes, things kept short are more beautiful, hai na? Let it be the way it is... :)

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  4. Anonymous,
    Thanks for liking it ... its just a thought... happy that you liked :)

    Amias,
    Its written in Hindi, our National Language. Enjoy my English posts :)

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  5. hi tan
    i though there was a need to edit ur post..b/c there were some grammatical mistakes..
    hope u dont mind my editing..
    by d way nice try.. :)
    अगर तू मुझको पढ़ रही है तो मुझसे ज्यादा खुश और कोई नही॥
    ये महफ़िल तेरी सजायी हुई है ये रोशनी तेरी की हुई है। ये आलम तेरा दिया हुआ है, तू कहती है मैं भूल जाऊं , मैं पास ना आऊं, लेकिन मैं जाऊं भी तो कहाँ जाऊं? हर गली तेरे घर से हो कर गुजरती है, हर रास्ता तेरे रास्ते से जुड़ जाता है , दिल कहता है कि मैं तुझे भरी महफ़िल में रुसवा कर जाऊं , और तू कहती है कि मैं चुप ही रह जाऊं, बेबसी, नाकामी और तेरी याद मुझे सोने नही देती .... मैं भटकता रहता हूँ उन्ही गलियों में जहाँ से तू कभी गुजरा करती थी ....

    तेरे बिन ना जीना है ना मरना
    तेरे बिन ना है, एक पग भी चलना

    तेरे बिन सूना है आलम सारा
    बीते दिन ना आयेंगे लौट के दोबारा

    वो बीते दिन क्यों याद आए
    पल पल मुझको तेरी ही याद सताए

    शायद कभी तुझे भी हम याद आयें
    तेरे बिन सूनी हैं दिल की वो राहें....

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  6. Thanks a lot for visiting my blog.I will definitely post some new recipes soon.You are welcome in my other blogs too and shall be happy if you become the follower.
    I liked your blog very much.You seem to be a very talented person.I appreciate for the beautiful poem written by you.

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  7. Did you fall in love and then couldn't get it Tanmoy?

    Its so beautifully woven. Bahut time se Hindi nahin padi thi, ye padke kuub achcha laga.

    Lovely one.

    -----
    Ilashree Goswami

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  8. Thank you all for commenting on my poem here. I am sorry, I am not able to spend more time here these days. I am happy to see you have not forgotten me and keep visiting my blog.

    Thanks Sahityika for editing the poem.

    And Ilashree, a poet is always in love - I am since I was a kid - and I do not fall out of it - my love is always there with me :)

    Cheers!!

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  9. Good one........loved this one...
    It s a lovely feeling.

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Thanks for reading me and choosing to comment. Your comment always encourages me to write more and write sense. Keep visiting, whenever you can and comment on the posts. I will be more than eager to receive your comments and suggestions.

Warm Regards,
Tan :)

PS: Please visit my other blog: Thus Spake Tan!