Tuesday, October 2, 2007

Hum aye the!

Backdrop: One of my friends, who have been writing lately sent me a mail with a thought of her। Asked my comments। The poem was in Hindi and was very tempting (for a reply poem)। Sorry to not include that poem here (to avoid violation of IPR)। So, this was my reply ...

हम आये थे तेरे दर पे,
बनके दीवाना कोई
पत्तों कि हुई थी सरसराहट
हवा मे थी हमारी आने कि अघाज़

हम आये थे तेरे दर पे, बनके दीवाना तेरा
लाए थे एक दिल तेरे लिए,
प्यार मे दुबोया हुआ;
प्यार से सजाया हुआ।

हम आये थे, मगर लौटना परा दरवाज़े से
तू नही थी, हम ढूंढे बहोत;
कहीं नही थी, हम पुकारे बहोत!

हमारी आखों मे था एय्त्बार, जो तुने देखा था कभी
हमारी आहों मे था इकरार, जो तुने समझा था कभी
शयेद कोई वादा कर लिया था, निगाहों ने हमारी,
शयेद तेरी आंखों से अपने दिलमे झाँक लिया था कभी.

वफ़ा ना कर सके हम; बेवफाई भी तो नही कि
तेरा नाम लेके तेरी रुसवाई भी तो नही कि!

हम आये थे तेरे दिलमे, ख़ुशी है हमे
इस लिए के तेरे दिल से होकर गुज़रे थे कभी,
तेरे दिल को aashiyanaa ना बाना पाया तो क्या?

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